श्री गोदाअष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम् – Sri Godha Aastotrasata Naamastotram
कर्कटे पूर्वफाल्गुन्यां तुलसी काननोद्भवाम्।
पाण्ये विश्वंभरां गोदां वन्दे श्रीरङ्गनायकीम्।।
श्रीरङ्गनायकी गोदा विष्णुचित्तात्मजा सती।
गोपीवेषधरा देवी भूसुता भोगशालिनी।।१।।
तुलसीकाननोद्भूता श्री धन्विपुरवासिनी।
भट्टनाथप्रियकरी श्रीकृष्णहितभोगिनी।।२।।
आभुक्तमाल्यदा बाला रंङ्गनाथप्रिया परा।
विश्वंभरा कलालापा यतिराजसहोदरी।।३।।
कृष्णानुरक्ता सुभगा सुलभश्री सलक्षणा।
लक्ष्मीप्रियसखी श्यामा दयाञ्चितदृगञ्चला।। ४।।
फल्गुन्याविर्भवा रम्या धनुर्मासकृत व्रता।
चम्पकाशोकपुन्नाग मालती विलसत्कचा।। ५।।
आकारत्रय संपन्ना नारायणसमाश्रिता।
श्रीमदष्टाक्षरी मन्त्रराजस्थित मनोरथा।।६।।
मोक्षप्रदाननिपुणा मन्त्ररत्नाधिदेवता।
ब्रह्मण्या लोकजननी लीलामानुष रूपिणी।।७।।
ब्रह्मज्ञानुग्रहा माया सच्चिदानन्द विग्रहा।
महापतिव्रता विष्णुगुणकीर्तन लोलुपा।।८।।
प्रपन्नार्तिहरा नित्या वेदसौधविहारिणी।
श्रीरङ्गनाथ माणिक्य मञ्जरी मञ्जुभाषिणी।। ९।।
सुगन्धार्थ ग्रन्थकरी रंगमंगलदीपिका।
ध्वजवज्राङ्कुशाब्जाङ्क मृदुपादतलाञ्चिता।।१०।।
तारकाकार-नखराप्रवाल मृदुलांगुली।
कूर्मोपमेय पादोर्ध्वभागा शोभनपार्ष्णिका।।११।।
वेदार्थभावविदित – तत्वबोधाङ्घ्रिपंकजा।
आनन्द-बुद्बुदाकार सुगुल्फा परमाणुका।।१२।।
तेजश्श्रियोज्ज्वलधृतपादांगुलिसुभूषिता।
मीनकेतनतुणीर चारुजंघा विराजिता।।१३।।
ककुद्वज्जानुयुग्माढ्या स्वर्णरम्भाभसक्थिका।
विशाल जघना पीनसुश्रोणी मणिमेखला।।१४।।
आनन्दसागरावर्त-गम्भीराम्भोजनाभिका।
भास्वद्वलित्रिका चारुजगत्पूर्ण महोदरी।।१५।।
नवमल्ली रोमराजी सुधाकुम्भायितस्तनी।
कल्पमालानिभ भुजा चन्द्र खण्डनखाञ्चिता।। १६।।
सुप्रवालांगुलीन्यस्त महारत्नागुलीयका।
नवारुणप्रवालाभ पाणिदेशसमञ्चिता।।१७।।
कम्बुकण्ठी सुचुबुका बिम्बोष्ठीकुन्ददन्तयुक्।
कारुण्यरस निस्यन्दिनेत्रद्वय सुशोभिता।।१८।।
मुक्ता सुचिस्मिता चारुचांपेयनिभ नासिका।
दर्पणाकारविपुलकपोलद्वितयाञ्चिता।
अनंन्तार्यप्रकाशोद्यन्मणि ताटंक शोभिता।।१९।।
कोटिसूर्याग्नि संकाश-नानाभूषणभूषिता।
सुगन्धवदना सुभ्रुरर्धचंद्रललाटिका।।२०।।
पूर्णचन्द्रानना नीलकुटिलालक शोभिता।
सौंदर्यसीमा विलसत्कस्तूरि- तिलकोज्वला।।२१।।
धगद्धगायमानोद्यन्मणि सीमन्त भूषणा।
जाज्ज्वल्यमानसद्रत्न दिव्यचूडावतंसका।।२२।।
सूर्यार्धचंद्र विलसत् भूषणाञ्चित वेणिका।
निगन्निगद्रत्नपुंज प्रान्तस्वर्णनिचोलिका।।२३।।
सद्रत्नाञ्चितविद्योत विद्युत्कुञ्जाभ शाटिका।
अत्यर्कानल तेजोधीः मणिकञ्चुक धारिणी।।२४।।
नानामणिगणाकीर्ण हेमांगद सुभूषिता।
कुंकुमागरु कस्तूरी दिव्य चन्दन चर्चिता।। २५।।
स्वोचितौज्वल्य विविध विचित्रमणिहारिणी।
असंख्येय सुखशस्पर्श-सर्वातिशय भूषणा।।२६।।
मल्लिका पारिजातादि दिव्यपुष्प स्रगंचिता।
श्रीरंगनिलया पूज्या दिव्यदेश सुशोभिता।।२७।।
एवं श्रीरंगनायक्या नाम्नामष्टोत्तरं शतं।
यो नरः पठते नित्यं नित्य निर्वाण संयुतम्।।२८।।
लब्ध्वा रंगपतेर्दासः दाससक्तो भविष्यति।।
रङ्गी नेत्रशरेण ताडिततनुः शेते स्वयं सुंदरो।
बद्धश्चपकमालया कुचतटीमग्नोsञ्जनाद्रीश्वरः।।
भोगापाटवलज्जया वटमहाधामा फणीन्द्रेsपतत्।
रंगेशस्तव विस्मितेन मनसा गोदे परं तिष्ठति।।